My stammering Story in Hindi?
विदयालय में हकलाहट
कक्षा छ: में जब मुझे पहली बार हकलाहट का अहसास हआ, तो मेरे अंदर एक डर घुस गया। की अब मै अगर बात करूंगा तो मेरे दोस्त, अध्यापक हँसेंगे। और फिर क्या, धीरे-धीरे मेने विद्यालय की सारी गतिविधियों में भाग लेना बंद कर दिया। कक्षा में कितनी बार हाजरी बोलते समय मे अटक जाता था। कई बार हाजरी न बोलने की वजह से मुझे अध्यापक से मार खानी पड़ती थी। कई बार मेरा दोस्त मेरी हाजरी बोलता था, और मे केवल हाथ खड़ा करता था। शायद मेरी हकलाने की वजह कक्षा पांच में मेरे दोस्त तालीम हसैन की नकल करना भी हो सकता है। हालांकि मै उसकी नकल नहीं उतारता था, बस जब वह बात करते समय थोड़ा सा रुकता तो मे उस पर हँसता था। और मेरा जहाँ तक मानना है, उसकी हकलाहट उस समय दस प्रतिशत ही थी। जब अभी (18 वर्ष) की उम्र में वह सऊदी अरब से मेरे गांव जोजावर आकर मुझसे मिला, तो वह बिल्कुल सामान्य व्यक्ति की तरह बात कर रहा था।
हकलाहट के प्रति परिवार का रवैया
मै एक मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का हूं। मे अपनी हकलाहट की मुख्य वजह ओर दोष पूरे परिवार को देना चाहता हूँ। क्योंकि बचपन से ही मुझे डराया गया, धमकाया गया, हर वो अच्छी चीज जो वास्तविक रूप से सही थी, उससे मुझे वंचित रखा गया। शुरुआत के पांच साल मेने अपने दादा और अंकल की मशीन पार्ट्स की दुकान पर काम किया। वहाँ पर उनको सिर्फ उनके काम से मतलब था, मे क्या पढ़ रहा हूँ, क्या खा रहा हूँ, उनको कोई मतलब ही नही था। और हर छोटी-छोटी गलती पर वह दोनो (दादा और अंकल) मुझे बहुत जोर से डाँटते थे, पीटते थे। मेरी दुकान के सामने ही सरकारी स्कूल हैं वहाँ पर में क्रिकेट खेलने जाता, तो वहाँ ग्राउंड में ही सबके सामने जोर से लकड़ी से मारते थे। पहले हम सब साथ में रहते थे। जब हम एकल परिवार बने। तो मै फिर अपने पिताजी की किराने की दुकान पर ही काम करने लगा। परन्तु यहाँ भी स्थिति हूबह थी। शायद मेरे पिताजी दुनिया के एकमात्र पिता होंगे, जिनकी यह सोच थी, की मे मौज- मस्ती करू। और मेरा बेटा जिंदगी भर इस दुकान पर बैठेगा। चाहे;- दूध, फल, सब्जी या कोई अन्य मेरे जरूरत की चीज सब मे दुकान के गुलक से पैसे चोरी करके खरीदता था। क्योंकि जब भी उनसे किसी वस्तु के लिए पैसे मांगता तो वह सीधे मना कर देते थे। और खुद (पिता) हर महीने, सप्ताह अपने मित्रमंडल के साथ घूमने जाते थे, फिजूल का खर्चा करते थे। मेरी हकलाहट की समस्या के लिए मेरा पूरा परिवार जिम्मेदार हैं।
हकलाने के प्रति समाज का रवैया
परिवार के बाद सबसे ज्यादा मजाक मेरे दोस्त, पड़ोसी और मोहल्ले वाले उड़ाते थे, और अभी भी उड़ाते हैं। हमारे समाज में लोग हकलाने वाले लड़के की मदद करने के बजाय और उसे ज्यादा तनाव में डाल देते हैं।
हकलाहट और अंधविश्वास
लगभग पाँच साल तक परिवार वाले लोगो की बातों में आकर वो सबकुछ करते जो लोग कहते थे। उदाहरण;
१. अपने जिले के प्रसिद्ध मंदिरों में जाकर चूरमा (प्रसादी) रखते थे, और बोलते थे, की हे भगवान अगर इसकी जुबान अटकनी बंद हो गई, तो अगले साल सो लोगो को चूरमा मेरी तरफ से।
२. एक मंदिर में चांदी की जीभ चढ़ाई।।
३. मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के एक गाँव में गये, जहाँ पर एक बाबा ने राख दी, और बोले इसको एक
महीने तक पानी में मिलाकर पीले। तेरी हकलाहट जड़ से खत्म हो जायेगी।
४. अजमेर में विजयनगर नामक स्थान पर गये, वहाँ पर उस डॉक्टर ने बताया की, यह रात को उल्टा
सोता है, इसलिए इसकी सांस लेने की क्षमता कम हो गई है।
शरीर को अन्य बीमारियों का जकड़ना
देना।
१. आँख की बीमारी- परिवार की लापरवाही के कारण जब आँख में चोट लगी तब समय पर इलाज नही करवाने के कारण मेरे आँखों के नंबर बढ़ गये। लेफ्ट में -6 वह राइट में -5 विजन हैं।
२. त्वचा रोग- इसके अलावा त्वचा रोग होने के कारण मेरे दो साल तो पिम्पल्स को ठीक करने में ही बर्बाद हो गये।
३. पिछवाड़े में गांठ- मेरे पिताजी की लापरवाही के कारण जब मुझे बुखार आया तो, डॉक्टर से इंजेक्शन लगवाने के बजाय मेडिकल वाले दोस्त से इंजेक्शन लगवा दिया। और उस समय मेरी उस जगह पर गाँठ उभर आयी। जो अभी तक हैं। एक समय तो ऐसा लग रहा था, की मे जो इतिहास रचने के लिए इस दुनिया में आया हूँ। उसमे रोड़ा (तकलीफ) यह सारी बीमारिया बनी हुई हैं।
मल्टी लेवल मार्केटिंग से जुड़ना
18 वर्ष की उम्र में मेने माई-रिचार्ज करके नेटवर्क मार्केटिंग कंपनी से जुड़ा। जिसमे पैसा कमाने के लिए पहले कंपनी का प्लान लोगो को दिखाना और समझाना जरूरी था। हकलाहट की डर की वजह से मे हर किसी व्यक्ति को प्लान दिखाने के लिए अपने सीनियर लीडर को साथ लेकर जाता था। और हकलाहट के कारण जो लीडर अशिक्षित थे, उनका
उनका टीम अचीवमेंट व कमाई मेरे से ज्यादा हुई। अगर मे हकलाहट से मुक्त होता तो शायद जो टारगेट में एक साल में प्राप्त नही कर पाया, उसको मै मात्र दो महीनों में पूरा कर लेता।
हकलाहट पर मेरी रिसर्च
मुझे इंटरनेट में पांच साल का गहरा अनुभव है। एक दिन मेने घर पर बैठे-बैठे यह सोचा, की इंटरनेट पर हर समस्या का समाधान उपलब्ध हैं। तो फिर मेने इंटरनेट का सहारा लिया।
१. सबसे पहले मेने गूगल पर टीसा को देखा, लेकिन मुझे इस संगठन में कुछ भी समझ में नही आया। अब तो वेबसाइट हिंदी में हो गई हैं।
२. उसके बाद मेवाड़ स्पीच थेरेपी सेंटर से सम्पर्क किया। लेकिन मुझे टीसा वाले दोस्त ने फेसबुक पर मना कर दिया। लेकिन वैसे भी मे यहाँ पर नही जा पाता क्योंकि मेरे पास पैसे नही थे। अब तो मैं खुद एक सफल इंसान हूँ।
३. उसके बाद नई दिल्ली की एक स्टार्टअप कंपनी है, इन्नोपलेप्स करके जिसने हकलाहट को खत्म करने के लिए एक एन्टी स्टेमरिंग डिवाइस बनाया है। जिसकी कीमत 7000 से 10,000 के लगभग हैं। आप यूट्यूब पर इसका वीडियो देख सकते हो।
४. उसके बाद मेने ऑनलाइन सूरज स्टेमरिंग केयर करके एक संस्था में अपना विवरण भरा। जिसके कुछ ही महीनो के बाद डाक से मुझे एक लैटर प्राप्त हुआ। इस पत्र मे बहुत कुछ अच्छी-अच्छी बातें सीखने को मिली। जहाँ पर हकलाहट को खत्म करने की सारी नयी तकनीक मौजूद है।
नयी उम्मीद व नई आशा की किरण हकलाने में
भले ही आपको मल्टी लेवल मार्केटिंग में सफलता नहीं मिले, लेकिन हर इंसान को एक बार नेटवर्क मार्केटिंग से
जरूर जुड़ना चाहिये। क्योंकि यहाँ से मोटिवेशन इतना मिल जाता है, की इंसान किसी भी क्षेत्र में काम करता है, वह उसमे बहत बड़ा नाम कमायेंगा। इसके अलावा कुछ व्यक्तियों के नाम आपको नीचे बता रहा हूं, जिनके भाषण, पॉवरफुल मोटिवेशनल, वह उनकी आदतों को अपनाने से मेरा पूरा जीवन बदल
● ऋतिक रोशन
हकलाहट से मुझे आजादी कैसे मिली ? How i got freedom from stuttering?
सबसे पहले तो ऊपर लिखी सारी बाते मैने अपने 19 साल के हकलाहट के सफर यात्रा का पूरा अनुभव हैं। इस मेरी हकलाहट की यात्रा को आप तक पहुंचाने का मेरा मकसद यही हैं, की आप भी इस बुरी आदत से जल्द छुटकारा पा सको। मेने अपने जीवन में कई साल इस बुरी आदत के कारण बर्बाद हुये। अब बात आती हैं, मुझे हकलाहट से आजादी कैसे मिली? इसका पूरा श्रेय में उन महान लोगो को देना चाहता हूँ। जिन्होंने मेरे अंदर के गलत विचार और डर को दूर किया। दोस्तों अगर आप पूरी तरह से ठान लेते हो की मुझे बस अब नही जीना इस बुरी आदत से, तो विश्वास मानिए आपको सारे रास्ते मिल जायेंगे। इसके अलावा हकलाहट को खत्म करने में प्राणयाम और व्यायाम का भी मेरे जीवन में बहुत बड़ा योगदान रहा हैं। इसके अलावा मेडिटेशन ध्यान लगाकर आप अपने मस्तिष्क को शांत कर सकते है। शालीनता का उपयोग कर अपने गुस्से को काबू में करे। अगर आपको कभी-कभार थोड़ी बहुत बोलने में परेशानी भी हो जाये, तो चिंता नही करे, इसके बजाय अपने आप पर हँसे। सार्वजनिक जगह पर भी बोलना पड़े, तो हँसते हुए अगले वाले से बात करे, इससे आपको बिल्कुल हकलाहट नही होंगी। इसके अलावा अपने जीवन का कोई लक्ष्य तय करें, क्योंकि जब आप अपना लक्ष्य निर्धारित नही करेंगे, तब तक आपका ध्यान अपनी समस्या पर रहेंगा। यकीन कीजिए, जब आप अपना लक्ष्य सेट कर देंगे, तो आप खुद महसूस करेंगे की अब मै खुश हूँ और अच्छे से सबसे बात कर पाओगें।
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